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Hareli Tihar Kab Hai |
Hareli Tihar Kab Hai
- त्यौहार का नाम – हरेली तिहार, गेड़ी तिहार , हरियाली तिहार।
- परंपरा/सस्कृति – छत्तीसगढ़ी संस्कृति
- हरेली तिहार कब है – 8 अगस्त 2021
हरेली तिहार - Hareli Tihar हमारे छत्तीसगढ़ का पहला और बहुत ही खूबसूरत त्यौहार है , जिसे हम छत्तीसगढ़ वासी प्रतिवर्ष सावन महीने के अमावस्या तिथि में बड़ी धूम धाम से मनाते है। छत्तीसगढ़ की संस्कृति और छत्तीसगढ़ का पहचान Hareli Tihar है क्योंकि यह किसानो का त्यौहार है। यह त्यौहार अत्यंत लोकप्रिय त्यौहार है जिसे हम छत्तीसगढ़ वासी Hareli Tihar , गेड़ी तिहार , हरियाली तिहार और हरेला त्यौहार का नाम देते है। Hareli Festival के दिन किसान खेती के समस्त औजार जैसे - नागर , कुदारी , हसिया , गैंती , रापा , आदि का साफ़ सफाई करके तथा साथ ही साथ बैलों और गायों को स्नान कराके उनका पूजा अर्चना करते है। Hareli के दिन घर की माताएं (माँ, दादी , भाभी , चाची ) सुबह से उठ कर चाँवल का चीला बनती है , जिसे खेती के सभी औजारों का पूजा करते समय चढ़ाया जाता है। साथ ही घर के छोटे - छोटे बच्चों के लिए गेड़ी का निर्माण किया जाता है। इस पावन अवसर पर प्रत्येक जगहों पर गेड़ी , बैलों का दौड़, कबड्डी , जलेबी दौड़ , नारियल फेक और तरह - तरह के खेलो का आयोजन किया जाता है। यही कारण है की यह त्यौहार हरियाली , खुशयाली और प्रेम का पर्व हरेली कहलाता है। आप सभी से अनुरोध है कि इस छत्तीसगढ़ राज्य हरेली तिहार की जानकारी को अपने दोस्तों को Whatsapp अन्य सोशल नेटवर्क पर अधिक से अधिक शेयर करें और उनको भी जानकारी मिल सके।
सावन संग आगे तिहार के झड़ी,
धोवव नांगर-बक्खर अउ मचव गेड़ी।
आगे हरेली... आगे हरेली।।
हरेली तिहार खेती किसानी अउ बनि-भूति म रमे लोगन बर तिज-तिहार एक ठीन खुशी के ओढऱ भर नोहय बल्कि अइसन परब अउ रित रिवाज ह समाज म कोनो न कोनो किसम के संदेसा लानथे। मेहनत मजूरी म लगे लोगन ल वइसे बाहिर के दुनियां ले काहीं लेना-देना नइये अपन काम ले काम, अऊ खुशी मनाही तभो अपने मन मुताबिक। इही सेती किसनहा भुइयां छत्तीसगढ़ के सबो तिज तिहार कोनो न कोनो परकार ले खेती किसानी ले ही जूरे रिथे। छत्तीसगढ़ म असाढ़ के दूसर पाख ले पानी दमोरे के सुरू हो जथे, इहां के कतको लोगन मन गरमी के दिन म कन्हार ल अकरस जोतई कर डारथे। एक सरवर पानी परीस ताहन धान ल बो डरथे। अब मौसम के ऊंच निच के सेती बोवई कभू-कभू पिछड़ जथे।
सावन तक एक्का दूक्का के छोड़े बोवई पूरा हो जथे। सावन के महीना किसान मन बर गजब खुशयाली लाथे। काबर कि पानी के टिपिर-टिपिर झड़ी संग तिहार ह घलो ओरी-ओरी ओरिया जथे। सबले पहिली आथे हरेली, येहा छत्तीगसढ़ के परमुख तिहार आय। किसान मन अपन नांगर बक्खर के पूजा करथे, लइका मन गेड़ी के मजा लेथे, गांव के सियानहा मन गांव के सुख समृद्धि बर डिह डोंगरी के देवता मन ल मनाथे। गांव के चरवाहा मन माल-मवेशी मन के बढ़वार अउ रोग-राई टारे बर दइहान म गरवा मन ल कंदइल(दवई) अउ लोंदी खवाथे। पाहटिया ह घरो-घर लीम के डारा खोचथे। तन मन ल निरोगी करे रखे म लीम के महत्ता ल तो डॉक्टर बईद सबो जानथे। जवान मन के झिमिर-झिमिर पानी म नरियर फेकउल। गेड़ी दउड़ अउ नरियर जीत। लोक परंपरा के धरोहर गठियाए सियन्हिन मन लइका सियान सबो पर रोटी-पीठा रांधथे अउ हरेली परब ल गजब हॉसी खुशी ले मनाथे।
सवनाही- हरेली तिहार सावन लगथे तव पहिली इतवार के गांव बनाय जाथे। गांव के सियान मन गांव के देवा धामी के ठऊर म जाथे अउ मानता अनुसार देव के मान गावन करथे। ये दिन गांव के बइगा संग सुजानी सियाने मन भर जाथे लइका मन ल ये कारज म नइ संघेरे। गांव म इतवार के पहिली गांव के सियान मन के गुड़ी म जुरियाथे। सवनाही रेंगाय बर बइगा ह चलागन अनुसार समान बताथे, गांव के मन बरार करके लानथे अउ शनिचरी रात म सवनाही रेंगाथे। असल म सवनाही गांव के देवी देवता अउ डीह डोंगरी के पूजन आय।
गांव म जेन दिन गांव बनाथे वो दिन काम बुता के मनाही रिथे। गांव म जब तक पानी भरे अउ कचरा माटी फेके के हांका नइ होवे तब तक गांव के कोनो ह कुआ बोरिंग ले पानी नइ भरे अउ न कोनो ह घर के कचरा ल घुरवा म फेकय। जब सबे देवी देवता म हूमन-धूपन मान-गवन हो जथे तेकर पाछू गांव के मन पानी भरथे अउ कचरा माटी फेकथे। ये दिन घर कुरिया अउ कोठार मन म गोबर के पुतरी बनाथे। सवनाही के बाद सावन महीना के इतवार भर गांव म काम-बूता बंद रिथे। समे के संग गांव के लोगन मन के विचार कतको बदलत हे तभो ले गांव म सावनाही, इतवारी तिहार के परंपरा चलते हावे अऊ चलते रही काबर की ये हमर पंरपरा के आरूग चिन्हा आय। लोगन के सोच ह अंधविस्वास अउ टोना-टोट्का ले छटियाके अब सिरिफ रीति-रिवाज अउ परंपरा के निर्वाह म लगे हे।
पशुधन के जतन- हरेली तिहार म माल-मवेशी मन के घलो बने जतन अउ हियाव करे जाथे। सावन म खेत-खार म कई किसम के नवा-नवा उपजे हरियर चारा गाय-गरवा अउ किसानी म काम करइया बइला-भइसा मन ल गजब सुहाथे। हरियर-हरियर कांदी अउ बन-बूटा ल ढिल्ला चरइया मवेशी म हरर-हरर खाथे। नवा उपजे इही चारा म कई किसिम के कीरा अउ रोग-राई संक्रमण वाला कांदी रिथे जेला पशुधन खा परथे। अइसन चारा चरे ले पशु मन म बीमारी फैले के डर रिथे। हरेली के दिन गांव के चरवाहा मन जोन कंदइल ल उसन के खवाथे वोहा गाय-गरवा मन बर औषधी के काम करथे, ओमन ल बरसात म होवइया संक्रमण ले बचाथे।
अबके भासा म काहन त सामूहिक उपचार। जेन गरवा ह दइहान म नइ आवे तेकर बर किसान मन राउत करा ले दवई मांग के घर लेग के खवाथे, ताकी कोनो ह दवई खाय बर झन छूटे। चरवाहा मन ये कंदइल ल रात के उसनथे अउ बिहनिया ले दइहान के गरवा मन ल लोंदी संग खवाथे। लोंदी गहू पिसान के लोई आए जेमा थोर-थोर नून या बिगर नून वाला घलो बनाके खवाथे। चरवाहा मन दवई क पाछू कोनो रूपिया पइसा नइ लेवे। काठा-पइली धान अउ सेर सीथा भर लेथे। माल-मवेशी के जतका संसो घर गोइसया ल रिथे ओकते संसो पाहटिया ल घलो रिथे। गांव के लोगन मन अपन गाय-गरवा ल हियाव कर-करके सावन के रोग-राई ले बचाथे अउ अपन संगवारी मितान भाई बरोबर बइला-भइसा ल खवा पियाके हरेली तिहार ल जुरमिल के मनाथे।